April 17, 2024
Shah Jahan Biography in Hindi | मुगल बादशाह शाहजहाँ की जीवनी

Shah Jahan Biography in Hindi | मुगल बादशाह शाहजहाँ की जीवनी

Shah Jahan Biography in Hindi | मुगल बादशाह शाहजहाँ की जीवनी

शाहजहाँ (Shah Jahan) का जन्म लाहौर में 05 जनवरी 1592 ई. को मारवाड़ के मोटा राजा उदयसिंह की पुत्री जगत गोसाई के गर्भ से हुआ था | अक्टूबर 1627 ई. में जहांगीर की मृत्यु के समय वह दक्षिण में था इसलिए उसके श्वसुर आसफ खा और राज्य के दीवान ख्वाजा अबुल हसन ने के कुटनीतिक चाल के तहत खुसरो के लडके “द्वार बख्श” को सिंहासन पर बिठाया | शाहजहाँ (Shah Jahan) ने अपने सभी भाइयो एवं सिंहासन के सभी प्रतिद्वन्दियो तथा अंत में दवार बख्स को समाप्त कर 24 फरवरी 1628 ई. को आगरे के सिंहासन पर बैठा |

समकालीन इतिहासकारो ने “दवार बख्स” को उचित ही बलि का बकरा कहा है | शाहजहाँ (Shah Jahan) का विवाह 1612 ई. में आसफ खा की पुत्री अर्जुमन्द बानू बेगम से हुआ था जो बाद में इतिहास में मुमताज महल के नाम से विख्यात हुयी | शाहजहाँ के मुमताज महल से उत्पन्न संतानों में से केवल 4 पुत्र एवं 3 पुत्रियाँ ही जीवित बचे थे जिनके नाम थे जहांआरा , दाराशिकोह , रोशन आरा , औरंगजेब , मुराद बख्स और गौहन आरा |

शहजहां (Shah Jahan) के अंतिम आठ वर्ष आगरा के किले के शाहबुर्ज में एम् बंदी की तरह व्यतीत हुए | इस समय में उसकी बड़ी पुत्री जहांआरा ने साथ रहकर उसकी सेवा की थी |शाहजहां की मृत्यु 1666 ई. में हुयी और उसे भी ताजमहल में उसकी पत्नी की कब्र के निकट साधारण नौकरों द्वारा दफना दिया गया |

विद्रोह

  • शाहजहाँ (Shah Jahan) के शासनकाल में पहला विद्रोह 1628 ई. में बुंदेला नायक झुझार सिंह का था |
  • शाहजहाँ के शासनकाल का दूसरा विद्रोह उसके एक योग्य एवं सम्मानित अफगान “खाने-जहां लोदी” ने किया था |
  • मुगल बादशाहों ने पुर्तगालियो को नमक के व्यापार का एकाधिकार दे दिया था किन्तु पुर्तगालियो की उद्दंडता के कारण शाहजहाँ ने 1632 ई. में उसके व्यापारिक केंद्र हुगली को घेर लिया और उस पर अधिकार कर लिया |
  • 1628 ई .एक छोटी सी घटना के कारण सिक्खों और शाहजहाँ के बीच वैमनस्य उत्पन्न हो गया | वजह थी शाहजहाँ का एक बाज उड़कर गुरु हरगोविंद के खेमे में चला गया और जिसे गुरु ने देने से इंकार कर दिया था |
  • मुगलों और सिक्खों के बीच दूसरा झगड़ा गुरु द्वारा श्री गोविन्दपुर नामक के नगर को बसाने को लेकर शुरू हुआ था जिसे मुगलों के मना करने पर भी गुरूजी ने बंद नही किया था |
  • शाहजहाँ (Shah Jahan) के शासनकाल के चौथे एवं पांचवे वर्ष दक्कन और गुजरात में भीषण दुर्भिक्ष पड़ा था जिसकी वजह से दक्कन और गुजरात वीरान हो गया |

शाहजहाँ का साम्राज्य विस्तार

  • शाहजहाँ (Shah Jahan) ने दक्षिण भारत में सर्वप्रथम अहमदनगर पर आक्रमण किया और 1633 ई. में उसे जीतकर मुगल साम्राज्य में मिला लिया तथा अंतिम निजामशाही सुल्तान हुसैनशाह को ग्वालियर के किले में कैद कर लिया |
  • शाहजहाँ ने अहमदनगर के वजीर एवं मलिक अम्बर के अयोग्य पुत्र फतह खा को राज्य की सेवा में ले लिया |
  • शाहजी भोसले पहले अहमदनगर की सेवा में थे किन्तु अहमदनगर के पतन के बाद उन्होंने बीजापुर की सेवा स्वीकार की |
  • अहमदनगर को साम्राज्य में मिलाने के बाद शाहजहाँ ने गोलकुंडा पर दबाव डाला | गोलकुंडा के अल्पायु कुतुबशाह ने भयभीत होकर 1636 ई. में मुगलों से संधि कर ली |
  • गोलकुंडा से संधि के फलस्वरूप शाहजहाँ का नाम खुतबे और सिक्कों दोनों पर सम्मिलित किया गया |
  • गोलकुंडा के शासक ने अपनी एक पुत्री का विवाह औरंगजेब के पुत्र शहजादा मोहम्मद से कर दिया |
  • गोलकुंडा के सुल्तान ने खुतबे से ईरानशाह का नाम हटाकर शाहजहाँ का नाम सम्मीलित करवाना स्वीकार किया फलस्वरूप 4 लाख हनो (मुद्रा) का वह कर जो गोलकुंडा राज्य को बीजापुर को देना पड़ता था माफ़ कर दिया गया |
  • मुहम्मद सैय्यद गोलकुंडा का वजीर था और वह किसी बात से नाराज होकर मुगलों की सेवा में चला गया था | इसी मुहम्मद सैय्यद (मीर जुमला) ने शाहजहाँ को कोहिनूर भेंट किया था |
  • शाहजहाँ (Shah Jahan) ने 1636 ई. में बीजापुर पर आक्रमण किया और मुहम्मद आदिलशाह प्रथम को संधि के लिए विवश कर दिया फलस्वरूप सुलतान ने 20 लाख प्रतिवर्ष कर के रूप में देने का वादा किया |
  • इसके अतिरिक्त बीजापुर ने प्रेनद्रा , गुलबर्गा , बीदर अरु शोलापुर के किले को मुगलों को दिया तथा गोलकुंडा से मित्रता और संघर्ष दोनों के निर्णय का अधिकार भी मुगलों को दे दिया |
  • जहांगीर के समय में 1622 ई. में कंधार मुगलों के अधिकार से निकल गया किन्तु शाहजहाँ के कुटनीतिक प्रयासों से अंसतुष्ट किलेदार अलीमर्दन खा ने 1639 ई. में यह किला मुगलों को सौंप दिया था किन्तु 1648-49 ई. में यह किला मुगलों से पुन: छिन गया और उसके बाद मुगल बादशाह पुन: इस पर कभी अधिकार नही कर सके |
  • शाहजहाँ ने मध्य एशिया अर्थात बल्ख एवं बदस्खा की अव्यवस्था का लाभ उठाने की कोशिश की परन्तु यह अभियान असफल रहा और लगभग 40 करोड़ रूपये की हानि हुयी |
  • शाहजहाँ (Shah Jahan) के समय कंधार अंतिम रूप से मुगलों के अधिकार से छिन गया |

शाहजहाँ की धार्मिक निति

  • शाहजहाँ (Shah Jahan) ने अपने शासनकाल के आरम्भिक वर्षो में इस्लाम का पक्ष लिया किन्तु कालान्तर में दारा और जंहाआरा के प्रभाव के कारण सहिष्णु बन गया था |
  • शाहजहाँ ने 1636-37 में सिजदा एवं पायवोस प्रथा को समाप्त कर दिया और उसके स्थान पर “चहार तस्लीम” की प्रथा शुरू करवाई तथा पगड़ी में बादशाह की तस्वीर पहनने की मनाही कर दी |
  • शाहजहाँ ने इलाही संवत के स्थान पर हिजरी संवत चलाया , हिन्दुओ को मुसलमान गुलाम रखने से मना कर दिया , हिन्दुओ की तीर्थयात्रा पर कर लगाया (यधपि कुछ समय बाद हटा लिया) तथा गौ-हत्या निषेध संबधी अकबर और जहांगीर के आदेश को समाप्त कर दिया |
  • शाहजहाँ  ने 1633 ई. में पुरे साम्राज्य में नवनिर्मित हिन्दू मन्दिरों को गिरा देने का हुक्मनामा जारी किया जिसके फलस्वरूप बनारस ,इलाहाबाद , गुजरात , और कश्मीर में अनेक हिन्दू मन्दिर तोड़े गये |
  • शाहजहाँ ने झुझार सिंह के परिवार के कुछ सदस्यों को बलात इस्लाम स्वीकार करने के लिए बाध्य किया |
  • शाहजहाँ (Shah Jahan) ने 1634 ई. में यह पाबंदी लगा दी कि यदि कोई मुसलमान लडकी हिन्दू मर्द से तब तक ब्याही नही जा सकती है जब तक कि वह इस्लाम धर्म स्वीकार न कर ले |
  • पुर्तगालियो से युद्ध होने पर उसने आगरे के गिरिजाघरो को तुड़वा दिया था |
  • अपने शासनकाल के सातवे वर्ष शाहजहाँ ने यह आदेश जारी किया कि यदि कोई स्वेच्छा से मुसलमान बन जाए तो उसे अपने पिता की सम्पति का हिस्सा प्राप्त हो जाएगा |
  • शाहजहाँ (Shah Jahan) ने हिन्दुओ को मुसलमान बनाने के लिए एक पृथक विभाग ही स्थापित कर दिया |
  • शाहजहाँ ने 2,50,000 रूपये के कीमत के हीर-जवाहरातो से जड़ी एक मशाल “मुहम्मद साहब” के मकबरे में भेंट की तथा 50,000 रूपये मक्का के धर्मगुरु को भेंट की |
  • शाहजहाँ नियमित रूप से मक्का और मदीना के मुल्लाओ और फकीरों को दान दक्षिणा भेजता था किन्तु इसके विपरीत उसने अनेक ऐसे कार्य जो उसकी धार्मिक सहिष्णुता का परिचय दिया |
  • शाहजहाँ ने झरोखा-दर्शन ,तुलादान और हिन्दू-राजाओ के माथे पर तिलक लगाने की प्रथा को जारी रखा |
  • शाहजहाँ (Shah Jahan )ने अहमदाबाद में चिंतामणि मन्दिर की मरम्मत किये जाने की आज्ञा दी तथा खम्भात के नागरिको के अनुरोध पर वहा गौहत्या बंद करवा दी |
  • गंगा लहरी और रस गंगाधर के लेखक जगन्नाथ उसके राजकवि थे इसके अतिरिक्त चिंतामणि , कवीन्द्रचार्य आयर सुन्दरदास आदि अनेक हिन्दू लेखक भी उसके दरबार में थे |

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