Virender Sehwag Biography in Hindi | Jivani Of Virender Sehwag
भारत में क्रिकेट खेल नही बल्कि एक जूनून है | भारतीय जनमानस की आशाये , निराशाए , भावनाए अपनी टीम की हार-जीत से बहुत ही निकट से जुडी हुयी है | बॉलीवुड के बाद विशाल भारतीय जन-समुदाय के मनोरंजन का एकमात्र साधन भी तो क्रिकेट ही है | उधर हिंदी प्रसारण ने क्रिकेट को देश के दूर-दराज के कस्बो उअर गाँवों तक पहुचा दिया है | आलम यह है कि खेल अब ग्रामीण और अर्द्धग्रामीण क्षेत्र में भी अपनी जड़े जमा चूका है जिसके कारण क्रिकेट की गतिविधियों को वहा बड़े पैमाने पर अपनाया जा रहा है | संकेत साफ़ है कि आनेवाली भारतीय क्रिकेट पीढ़ी अधिकतर इन्ही गाँवों , कस्बो और छोटे नगरो से आकर भारतीय टीम की सफलता में हाथ बटायेंगे |
इस परिपेक्ष्य में सहवाग उस कड़ी के पहले पडाव है | वे दिल्ली के ग्रामीण क्षेत्र नजफगढ़ के निवासी है और परिवार अनाज व्यापार से जुड़ा हुआ है | “वीरू” के नाम से जाने जानेवाले इस युवक ने सन 1999 में एकदिवसीय और दो साल बाद टेस्ट मैचो में भारत का प्रतिनिधित्व किया | वे एक धुँआधार मध्यम क्रम के बल्लेबाज तथा एक उपयोगी “ऑफ़ स्पिनर” के रूप में विकसित हुए परन्तु बाद में उन्हें सलामी बल्लेबाज का दायित्व सौंपा गया | यह भूमिका उन्होंने इतनी बखूबी निभाई कि टेस्ट क्रिकेट में दो तिहरे शतक जमानेवाले एकमात्र भारतीय बल्लेबाज बने \ उनकी अद्वितीय सफलताओं को उन्हें भारतीय टीम की उप-कप्तानी सौंपकर मान्यता प्रदान की गयी परन्तु बीच में उनके प्रदर्शन में गिरावट भी आई | यही नही उनके टीम में स्थान पर भी प्रश्न-चिन्ह लग गया था |
चपल प्रतिक्रियाओं तथा आँख और हाथ का सही तालमेल से उन्हें पराक्रम प्रदान किया कि उन्होंने विश्व विख्यात गेंदबाजों की धज्जियाँ उड़ाकर उनकी औसत तथा मान-मर्यादा को मिटटी में मिला दिया | उनकी आक्रमक बल्लेबाजी का कोई सानी नही है | न्यूजीलैंड के गेंदबाजों को उनकी विद्युतीय बल्लेबाजी का आभास हुआ , जब उन्होंने 79 गेंदों में ही शतक बना दिया | उधर दक्षिण अफ्रीका के विरुद्ध पहले ही टेस्ट में सैंकड़ा ठोककर अपने आगमन का खूब डंका बजाय | अपनी नई जिम्मेदारी को सहवाग ने बड़ी कुशलता से निभाया | चुनौतीपूर्ण परिस्थितिया भी उनके पक्के इरादों को विचलित नही कर पाई |
सहवाग परिवार का मूलतः हरियाणा से नाता है | अपने पिता कृष्ण और माता कृष्णा की चार संतानों में से वे तीसरे है | पिता ने बालक को बचपन में खिलौनेवाला बल्ला सौंपकर क्रिकेट की पाठ-पट्ठी का श्रीगणेश किया | उनकी शिक्षा अरोड़ा स्कूल में सम्पन्न हुयी और कॉलेज में दाखिला लेने के बजाय उन्हें क्रिकेट खेलना अधिक भाया | स्कूल में क्रिकेट खेलते हुए उनका एक दांत टूट जाने के कारण उनके खेलने पर पाबंदी लग गयी परन्तु माँ ने इस संकट से बेटे को मुक्ति दिला दी |
उन्हें उच्च श्रेणी क्रिकेट खेलने का अवसर दिल्ली (1997-98) , भारत (2001) तथा इंग्लिश काउंटी लीसेस्टशायर (2003) की ओर से प्राप्त हो चूका है | उनके कुछ यादगार प्रदर्शनी का उल्लेख करना भी आवश्यक हो जाता है | निराशाजनक शशुरुवात के बाद उन्होंने घरेलू श्रुंखला में जिम्बाबे के विरुद्ध (58) तथा ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ (58 , 54 गेंदों पर , 3 विकेट और “मेंन ऑफ़ द मैच”) संतोषजनक प्रदर्शन किया | फिर श्रीलंका में त्रिकोणीय श्रुंखला में उन्होंने अपना पहला एकदिवसीय शतक (69 गेंदों पर)के कारण अपनी टीम को फाइनल में पहुचने में कामयाब रहे | इसके बाद दक्षिणी अफ्रीका में खेले जानेवाले त्रिकोणीय मुकाबलों में दूसरा तेज अर्द्धशतक लगानेवाले भारतीय बने |
घरेलू श्रुंखला में इंग्लैंड के विरुद्ध कानपुर में धुआधार 84 रन (64 गेंदों पर ) भारतइ 8 विकेटइ जीत में सार्थक सिद्ध हुए | उधर इंग्लैंड और दक्षिण अफ्रीका के विरुद्ध 426 रन (औसत 42.6 ) बनाये , जिसमे 4 अर्द्धशतक शामिल थे जबकि सन 2002 में श्रीलंका में आयोजित ICC चैम्पियनशिप में उन्होंने 271 रन बनाकर दो मैन ऑफ़ द मैच पुरुस्कार हथियाए | इसी टूर्नामेंट मे इंग्लैंड के खिलाफ जहा उन्होंने गांगुली के साथ पहले विकेट के लिए 192 रनों की साझेदारी निभाते हुए स्वयं 126 रन (104 गेंदों पर) बनाकर भारत को 8 विकेट से जीत दर्ज कराने में कामयाब रहे | उनके 58 फटाफट रन और 3 विकेट 25 रन पर चटकाने के कारण भारत फाइनल में पहुच पाया था |
उसी वर्ष राजकोट में उनके 114 तूफानी रन और गांगुली के साथ 196 रन की साझेदारी वेस्ट इंडीज को परास्त करने में कारगर रही | उनका 2003 विश्व कप प्रदर्शन औसत रहा | उन्होंने 299 रन (औसत 27) ,जिसमे फाइनल में ऑस्ट्रेलिया के विरुद्ध 82 उनका सर्वाधिक स्कोर था बनाये | सन 2007 में विश्व कप में बरमुडा के खिलाफ सर्वाधिक रन (413/5) अर्जित करने में उनके धुअधार 114 रन मुख्य स्कोर रहा परन्तु अगले मैच में भारत प्रतियोगिता से बाहर हो गया था | सहवाग भारतीय क्रिकेट के स्तम्भ समान है |
Read More…