Prithviraj Kapoor Biography in Hindi | हिंदी फिल्म जगत के पितामह पृथ्वीराज कपूर की जीवनी
हिंदी फिल्म संसार में पितामह के तुल्य सम्मान पाने वाले पृथ्वीराज कपूर (Prithviraj Kapoor) का व्यक्तित्व हिमालय के तुल्य विशाल तथा अपरिमेय था | उनके परिवार की चार पीढ़िया सिनेमा व्यवसाय से जुडी रही तथा सभी ने अपने अपने क्षेत्र में अपूर्व सफलता प्राप्त की है | हिंदी फिल्मो ई नई-पुरानी पीढ़ी ने पृथ्वीराज (Prithviraj Kapoor) को सम्मान दिया और उन्हें प्यार से पापाजी कहकर पुकारा |
पृथ्वीराज कपूर (Prithviraj Kapoor) का जन्म 3 नवम्बर 1906 को पश्चिमोत्तर सीमान्त प्रदेश (अब पाकिस्तान) की राजधानी पेशावर में विश्वेश्वरनाथ के यहा हुआ | उनकी आरम्भिक शिक्षा समुंदरी नामक कस्बे में हुयी ,जहा उनके पिता तहसीलदार थे | नाटको में अभिनय करने की रूचि उनमे प्रारम्भ से ही थी | 1927 में पृथ्वीराज ने पेशावर के एडवर्ड्स कॉलेज से बीए किया और कानून की पढाई के लिए लाहौर गये | कला ,साहित्य ,सौन्दर्य और फैशन की नगरी लाहौर में रहकर पृथ्वीराज का आकर्षण फिल्म तथा अभिनय में अधिक मुखर हो गया |
परिणाम निकला कि वे 1929 में कानून की परीक्षा में असफल रहे | इसी वर्ष सितम्बर को वे फिल्मो की अघोषित राजधानी बम्बई चले आये और आर्देशर ईरानी की इम्पीरियल फिल्म कम्पनी में भर्ती हो गये | वह जमाना मूक फिल्मो का था | Challenge नाम की एक मूक फिल्म में उन्होंने बिना किसी पारिश्रमिक लिए काम किया किन्तु दुसरी फिल्म Cinema Girl के लिए 70 रूपये पारिश्रमिक के रूप में प्राप्त हुए | 1930 तक आते आते मूक फिल्मो का युग समाप्त हुआ और बोलती फिल्मे चल पड़ी |
1931 में जब आर्देशन ईरानी ने पहली सवाक फिल्म “आलम आरा” बनाई तो पृथ्वीराज को इसमें खलनायक का रोल मिला | 1932 में पृथ्वीराज (Prithviraj Kapoor) ने एंडरसन थिएटर क्प्म्नी ज्वाइन कर ली और इसकी टोली के साथ देश के विभिन्न स्थानों का भ्रमण किया | इस कम्पनी में रहकर कपूर का नाटको में अभिनय करने का शौक अवश्य पूरा हुआ | एंडरसन कम्पनी बंद हो गयी तो पृथ्वीराज (Prithviraj Kapoor)कलकत्ता में बी.एन.सरकार द्वारा स्थापित New Theater Company में आ गये | यहा उन्हें नायक के रूप में अनेक फिल्मो में काम करने का अवसर मिला |
1933 में न्यू थिएटर्स ने “राजरानी मीरा” का निर्माण किया जिसमे पृथ्वीराज (Prithviraj Kapoor) ने प्रमुख पात्र भोजराज की भूमिका अदा की | मीरा का रोल दुर्गा खोटे को मिला था |1935 में “भूकम्प के बाद” में भी उन्होंने दुर्गा खोटे के साथ काम किया | 1936 में बंग्ला के विख्यात कथाकार शरतचंद्र के उपन्यास “गृहदाह” को लेकर न्यू थिएटर ने फिल्म “मंजिल” बनाई | इसमें पृथ्वीराज के साथ प्र्सिध्ह अभिनेत्री जमुना थी | जिसने एक वर्ष पूर्व “देवदास” में पारो का रोल क्र ख्याति पायी थी |
1937 में वे “विद्यापति” तथा “अनाथ आश्रम” ने आये | “विद्यापति” में उनके साथ प्रसिद्ध गायिका कानन थी तो “अनाथ आश्रम” में एक दुसरी प्रख्यात कलाकार उमा शशि | पृथ्वीराज 1939 तक कलकत्ता में रहे और इस बीच उनकी “अभागिन (1938)” सपेरा (1939) और दुश्मन (1939 ) फिल्मे रिलीज हुयी | वर्ष 1939 में बम्बई का आकर्षण पुन: उन्हें वहा खींच लाया | इस बार उन्होंने रणजीत स्टूडियो में काम करना आरम्भ किया और अधूरी कहानी ,चिंगारी , पागल तथा आज का हिन्दुस्तान शीर्षक फिल्मो में काम किया |
फिल्म जगत में उनके अभिनय ,प्रभावशाली संवाद ,अभिव्यक्ति तथा आदर्शवादी विचारधारा का सम्मान हुआ | आगे के वर्षो में उनकी प्रसिद्ध फिल्मे दर्शको को सम्मोहित करती रहे | 1941 में मिनर्वा मूवीटोन ने प्रसिद्ध एतेहासिक कथानक लेकर फिल्म “सिकन्दर” का निर्माण किया | इसमें पृथ्वीराज (Prithviraj Kapoor) ने जगत विजय का स्वप्न देखने वाले यूनानी शासक सिकन्दर का किरदार निभाया था | पंडित सुदर्शन के गीतों और संवाद योजना ने इस फिल्म को सफलता की उंचाइयो तक पहुचा दिया |
1942 में वे शालीमार पिक्चर्स की फिल्म “एक रात” में आये | जब प्रख्यात गायिका और अभिनेत्री नसीम बानो के पति मोहम्मद एहसान ने ताजमहल पिक्चर्स कम्पनी बनाई और “उजाला” शीर्षक फिल्म बनाने की घोषणा की तो उसमे नसीम और पृथ्वीराज की जोड़ी ने स्मरणीय अभिनय किया | 1943 में बनी “इशारा” में सुरैया उनकी नायिका थी | इतिहास के स्वर्णिम पृष्टो को रजतपट पर लाने में निपुणता प्राप्त विजय भट ने 1945 में “विक्रमादित्य” का निर्माण किया और पृथ्वीराज ने पराक्रमी सम्राट विक्रमादित्य की भूमिका निभाई | भालजी पेंदारकर की धार्मिक फिल्म “वाल्मीकि” में भी पृथ्वीराज (Prithviraj Kapoor) का काम सराहनीय रहा |
देश की स्वाधीनता प्राप्त कर लेने के पश्चात उनकी अभिनय यात्रा निरंतर अग्रसर रही | “दहेज़”, “आवारा” तथा “मुगलेआजम” जैसे फिल्मो में उनकी शानदार अदाकारी ,प्रभावशाली संवाद योजना तथा पात्र के साथ ताद्मात्य स्थापित कर लेने की कला के कारण उनके अभिनय को शीर्षस्थ माना गया | पृथ्वीराज (Prithviraj Kapoor) का रंगमंच से विशेष लगाव रहा | वे नाटको के मंचन को देश की सामाजिक तथा सार्वजनिक जीवन में परिवर्तन लाने का साधन समझते थे |
अपने इसी लक्ष्य को ध्यान में रखकर उन्होंने 15 जनवरी 1944 को पृथ्वी थिएटर नमक नाट्य कम्पनी बनाई और अपने पुत्रो सहित अनेक कलाकारों को रंगमंच से जोड़ा | पृथ्वी थिएटर से मंचित किये गये नाटको के कथानक ,पात्र योजना तथा संवाद आदि स्वयं पृथ्वीराज के मस्तिष्क से निकले थे | उन्होंने अपनी इस कम्पनी से दीवार ,पठान , गद्दार ,आहुति ,शकुन्तला ,पैसा ,कलाकार और किसान शीर्षक नाटको का मंचन किया |
देश के 130 नगरो में जाकर उन्होंने ये नाटक अभिनीत किये तथा उन्हें स्वयं 2662 बार इन नाटको के पात्रो की भूमिका में आना पड़ा | इन नाटको के माध्यम से वे देश में नई सामाजिक एवं राजनैतिक चेतना का संचार करना चाहते थे | उन्होंने रंगमंच की तकनीक में भी प्रभावी परिवर्तन किये | दरअसल पृथ्वीराज (Prithviraj Kapoor) अपने पृथ्वी थिएटर के आदर्श पर एक राष्ट्रीय रंगमच का का निर्माण करना चाहते थे | जब उनके नाटको का मंचन समाप्त होता था तो वे थिएटर हॉल के गेट पर अपने कुर्ते को झोली की तरह फैलाकर खड़े हो जाते थे और दर्शको से राष्ट्रीय रंगमंच के लिए सहायता मांगते |
उनकी यह योजना सफल नही हुयी और 1960 में पृथ्वी थिएटर बंद करना पड़ा | वर्षो बाद उनके कनिष्ठ पुत्र शशि कपूर ने उसे पुनर्जीवित किया | पृथ्वीराज कपूर (Prithviraj Kapoor) मात्र अभिनेता तथा कलाकार ही नही थे बल्कि वे देश के राष्ट्रीय आंदोलनों तथा सामजिक सरोकारों से सदा जुड़े रहे | शुभ्र खादी की वेशभूषा धारण करनेवाले पृथ्वीराज कपूर की कांग्रेस से सदा निष्ठा रही | वे पंडित जवाहरलाल नेहरु जैसे राष्ट्रीय नेताओ के प्रिय पात्र रहे |
1952 और 1954 में उन्हें कलाकार की हैसियत से राज्यसभा का सदस्य मनोनीत किया गया | उन्हें पद्मभूषण उपाधि से भी सम्मानित किया गया तथा मरणोपरांत दादा साहेब फाल्के पुरुस्कार से सम्मानित किया गया | 29 मई 1972 को हिंदी फिल्म संसार की इस महान विभूति ने अपनी अंतिम साँसे ली और अपने पीछे कपूर खानदान के नाम से के एक बहुत बड़ा परिवार पीछे छोड़ गये जो उनकी मृत्यु के 50 वर्ष बाद भी फिल्मो में सक्रिय है |
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