स्वतंत्रता सेनानी नाना साहब की जीवनी | Nana Saheb Biography in Hindi
प्रथम स्वाधीनता संग्राम में नाना साहब (Nana Saheb) वीर नायको में से एक माने जाते है | नाना साहब का जन्म माधवनारायण नगर राव के घर हुआ था | उनका मूल नाम धुंधू पन्त था | इनके पिता पेशवा बाजीराव द्वीतीय के सगोत्र भाई थे | इस मराठा वीर को तीन साल की उम्र में पेशवा बाजीराव ने गोद लेकर उन्हें गद्दी का सम्भावित उत्तराधिकारी बना दिया | उनकी शिक्षा दीक्षा का उचित प्रबंध किया गया | उन्हें कई भाषाओं का ज्ञान कराया गया |
28 जनवरी 1851 को अंतिम पेशवा बाजीराव की मृत्यु हो गयी | कम्पनी के शासन ने बिठुर स्थित कमिश्नर को आदेश दिया कि वह नानाराव को सूचित कर दे कि शासन ने उसे केवल पेशवाई धन-सम्पति का ही उत्तराधिकारी माना है न कि पेशवा की उपाधि का | इसलिए वह पेशवा की गद्दी प्राप्त करने का प्रदर्शन न करे लेकिन नाना राव ने सारी सम्पति को अपने हाथ में लेकर पेशवा के शस्त्रागार पर भी अधिकार कर लिया और कुछ ही दिनों में नाना राव ने पेशवा की सभी उपाधियो को धारण कर लिया |
कम्पनी ने उनका वार्षिक पेंशन बन कर दिया तो वे ब्रिटिश शासन के प्रबल विरोधी हो गये | वे अचानक तीर्थयात्रा पर निकल गये | सन 1857 में वे कालपी , दिल्ली और लखनऊ गये | कालपी में बिहार के प्रसिद्ध क्रांतिकारी कुँवरसिंह से भेंट की और भावी क्रान्ति की चर्चा की | जब मेरठ में क्रान्ति का श्रीगणेश हुआ तो नाना साहब ने बड़ी वीरता से क्रान्ति की सेनाओं का कभी गुप्त रूप से तो कभी खुले रूप से नेतृत्व किया |
प्रथम स्वाधीनता संग्राम की चिनगारिया फूटते ही उनके कुछ अनुयायियों ने अंग्रेजी खजाने से साढ़े आठ लाख रूपये और युद्ध सामग्री लुट ली | कानपुर के अंग्रेज एक गढ़ में कैद हो गये और क्रान्तिकारीयो ने वहा भारतीय ध्वज फहरा दिया | सभी क्रांतिकारी दिल्ली जाने के लिए कानपुर एकत्र हुए | नाना साहब ने उनका नेतृत्व किया और दिल्ली जाने से उन्हें रोक लिया कि वे दिल्ली जाकर खतरा मिल लेते |
कल्याणपुर से ही नाना साहब (Nana Saheb) ने युद्ध की घोषणा कर दी | व्यूह रचना रचते हुए अपने सैनिको को उन्होंने अलग अलग टुकडियो में बांटा | जब सभी अंग्रेज कानपुर के सतीचौरा घाट से नावो पर जा रहे थे तभी क्रान्तिकारियो ने उन पर गोलियाँ चलाई | उनमे से कई अंग्रेज मारे गये | 1 जुलाई 1857 को अंग्रेजो ने कानपुर से प्रस्थान किया तो नाना साहब ने पूर्ण स्वतंत्रता की घोषणा कर दी और पेशवा की उपाधि धारण की |
नाना साहब (Nana Saheb) ने क्रांतिकारी सेनाओं का बराबर नेतृत्व किया | फतेहपुर और अंग आदि स्थानों पर अंग्रेजो से उनके दल के भीषण युद्ध हुए | कभी बाजी नाना साहब के हाथ में आती तो कभी अंग्रेजो को विजय मिलती | इसके बाद जब अंग्रेजी सेनाओं को आगे बढ़ते देखा तो नाना साहब ने गंगा नदी पार की और लखनऊ की ओर प्रस्थान किया | नाना साहब एक बार फिर कानपुर लौटे और फिर अवध छोडकर रुहेलखण्ड चले गये |
रुहेलखण्ड में बहादुर खा को अपना पूरा सहयोग दिया | अब तक अंग्रेजो को यह अच्छी तरह से समझा में आ गया था कि जब तक नाना साहब पकड़े नही जाते विप्लव को दबाया नही जा सकता | अंग्रेज सरकार ने नाना साहब को पकड़ने के लिए बड़े-बड़े इनाम घोषित किये लेकिन वे गिरफ्तार नही हुए | 1859 में नाना साहब (Nana Saheb) किसी अज्ञात स्थान पर चले गये और सम्भवत: वही उनका निधन हो गया |