जैव रसायनशास्त्री डा.हरगोविंद खुराना की जीवनी | Har Gobind Khorana Biography in Hindi
जबसे इस सृष्टि में मानव के साथ साथ विभिन्न जीव जन्तुओ का जन्म हुआ तो हम उनकी संतानों को देखकर हमेशा अपने मन में यही प्रश्न लाते है कि संतानों के नाक-नक्श ,रूप-रंग बनावट उनके माता-पिता से इतने मिलते जुलते कैसे है ? इनके प्रश्नों का उत्तर ढूंढते हुए विश्व के वैज्ञानिकों ने कालान्तर में कुछ वर्णसंकर प्रजातियों को भी उत्पन्न किया | अब तो हमारा विज्ञान मानव क्लोन ,पशु पक्षियों के क्लोन तक बनाने में सक्षम हो चूका है | मानव ,पशु-प्क्शीए ,जीव जन्तुओ के साथ साथ वैज्ञानिकों ने पेड़-पौधों तथ फसलो की नई नई प्रजातियों की खोज में भी सफलता पायी है | वस्तुत: एक जीवन से दुसरे जीव की उत्पत्ति होना फिर उनके गुण-धर्म का मिलना यह सब गुणसूत्र या जींस की संरचना पर निर्भर है | इस विषय के प्रमाण सहित तथ्य संसार के सामने जिन वैज्ञानिकों ने लाये है उनमे नीरेन वर्ग ,रोबर्ट हौले तथा डा,हरगोविंद खुराना (Har Gobind Khorana) का नाम उल्लेखनीय है | डा.खुराना ने जींस संबधी खोजो के लिए नोबेल पुरस्कार भी प्राप्त किया |
डा.खुराना (Har Gobind Khorana) का जन्म पंजाब के मुल्तान जिले के रायपुर गाँव में सन 1922 में हुआ था | उनके पिता गणपतराय खुराना गाँव के पटवारी थे | चार भाई और एक बहन के लाडले खुराना ने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा गाँव के स्कूल में ही प्राप्त की | इसके बाद वो DAV स्कूल मुल्तान में आगे पढने हेतु चले गये | पिता की मृत्यु होने के बाद वे हाईस्कूल की पढाई में उन्हें सर्वाधिक प्रेरणा अपने प्रिय शिक्षक दीनानाथजी से मिली | लाहौर के पंजाब विश्वविद्यालय में प्रवेश लेकर छात्रवृति प्राप्त कर आगे की पढाई पुरी की |
1943 में B.sc. Honors , 1945 में M.sc. की परीक्षा उत्त्तीर्ण की | विश्वविद्यालयीन शिक्षा पुरी करने लिए उन्हें लीवरपुल विश्वविद्यालय से फ़ेलोशिप का लाभ मिला | 1948 में उन्होंने कार्बनिक रसायनशास्त्र पर Ph.D. प्राप्त की | बैक्टीरिया पिगमेंट और अल्कलायड संरचना पर शोधकार्य किया | देश विभाजन के बाद वे सपरिवार शरणार्थी बनकर दिल्ली आ गये | भारत सरकार द्वारा शोधकार्य हेतु फेलोशिप प्राप्त कर ज्यूरिख स्विटजरलैंड चले गये | इथीरीन अल्कालायड पर अध्ययन कर भारत लौट आये |
भारत में उन्हें ना तो सुविधाए मिली और न शोधकार्य हेतु उचित सुविधाए | इंग्लैंड के कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय आकर सर टाड के निर्देशन में शोधकार्य जारी रखा | 1952 में स्विस महिला इस्थर एलिजाबेथ सिलबर से विवाह किया | इंग्लैंड छोडकर कनाडा आ गये , जहा वैंकुवर स्थित विश्वविद्यालय में सिमित सुविधाओं के बाद भी केवल शोधकार्य जारी रखा अपितु सात सदस्यीय एक शोध टीम भी बना डाली | 1959 में उन्होंने डा.जॉन मोफेर के साथ कोएन्जाइम बनाने में सफलता हासिल की |
1 सितम्बर 1960 को अमेरिका आकर विस्कोंसिन विश्वविद्यालय में एंजाइम शोध संस्थान के सहनिदेशक , 1962 में जैव रसायनशास्त्र के प्रोफेसर तथा 1964 में विश्वविद्यालयीन शरीर विज्ञान विभाग के प्रोफेसर नियुक्त हुए | यहा आकर उन्होंने जीन संरचना में किस प्रकार सेलो के जीन्स इसके एंजाइम तैयार करते है इसकी अध्ययन प्रक्रिया को जारी रखा और यह साबित किया कि सेल की नाभी का DNA दुसरे RNA को तैयार करता है जो माता-पिता के गुणों के प्रतिबिम्ब पर आधारित होता है जिसमे सिर्फ अंतर यह होता है कि न्युक्लियोटाइड्स के स्थान पर युरोसिल बेसेस आ जाता है |
एक बार बनने के बाद RNA रिबोसेल से जुड़ जाता है जो कि सेल की प्रोटीन संरचना का स्थान होता है | दुसरे प्रकार का RNA सेल में बह रहे अमीनो एसिड को ले लेता है और रिसोबेल तक ले जाता है जहा उनमे प्रोटीन बनता है | इस प्रकार हर बार अलग अलग अमीनो एसिड बन जाता है और अलग अलग प्रकार RNA होता है | चार न्युक्लियोटाईडस कुल मिलाकर 64 प्रकार के न्युक्लियोटाईडस की रचना करते है | 1964 तक डा.खुराना ने कृत्रिम रूप से न्युलियोटाईडस तैयार कर लिया और उन्होंने यह बताया कि अमीनो एसिड में से एक से ज्यादा तिकड़ी होती है |
इस तरह डा.खुराना (Har Gobind Khorana) ने दुनिया को बताया कि माता-पिता के गुण सन्तान में उनके शरीर में स्थित कोशिकाओं के केंद्र में स्थित क्रोमोसोम अर्थात गुणसूत्र के जरिये आ जाते है | अपनी प्रयोगशाळा में उन्होंने अपने वैज्ञानिक साथियो के साथ मिलकर ऐसे जींस का निर्माण किया जिसको परिवर्धित करने पर सन्तान के गुणों में परिवर्तन होता आ जाता है | डा.खुराना और उनके साथियों ने जीवाणुओं में कृत्रिम जींस का प्रवेश कराकर यह प्रतिपादित किया कि वह भी प्राकृतिक जींस की तरह कार्य कर सकता है |
डा.खुराना (Har Gobind Khorana) ने अपनी इस महान जींस संबधी खोज के लिए नोबेल पुरुस्कार के साथ साथ विश्व के देशो से अनेक पुरुस्कार एवं सम्मान एवं उपाधियो से विभूषित किया गया | भारत सरकार ने उन्हें पद्मभूषण तथा पंजाब विश्वविद्यालय ने उन्हें डा. ऑफ़ साइंस की उपाधि से नवाजा |डा.खुराना ने दृष्टि और प्रकाश के क्षेत्र में उनके रासायनिक विश्लेष्ण पर भी शोधकार्य किया | ताजमहल को चांदनी रात में भी सूर्य के प्रकाश की तरह ही साफ़ साफे देखा जा सकता है कैसे ? इसे प्रमाणित किया था |
डा.खुराना (Har Gobind Khorana) ने मानवोपयोगी जो अनुसन्धान किया ,उसके द्वारा DNA और RNA के द्वारा कई आनुवंशिक बीमारियों का उपचार सम्भव कर दिखाया | सभी जीवो का निर्माण विशेष रासायनिक तत्वों के संयोग से होता है | हाइड्रोजन ,नाइट्रोजन कार्बन आदि के सैंकड़ो परमाणु जीवन के अणु बनाते है | इससे ही जीवन की इकाई बनती है | इस तरह जीवन चलता है | डा.खुराना (Har Gobind Khorana) की जींस संबधी खोज समस्त विश्व के लिए वरदान स्वरूप थी |
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