Chanakya Biography in Hindi | आचार्य चाणक्य की जीवनी
भारत एक प्राचीन गौरवमय देश है जिसे सदियों तक विश्वगुरु रहने का सौभाग्य प्राप्त रहा है | सूर्य सदैव पूर्व में उदय होता है ज्ञान का सूर्य भी पूर्व से ही उदय हुआ था | अर्नेस्ट बार्कर का यह आरोप सही नही है कि भारत का प्राचीनकाल राजनीतिक चिन्तन की दृष्टि से मरुभूमि है और प्राचीन भारत ने विश्व को केवल आध्यात्म दर्शन दिया है | 20वी शताब्दी के आरम्भ में कौटिल्य के अर्थशास्त्र की खोज ने इस मत का पूर्णतया खंडन कर दिया | इसने यह सिद्ध कर दिया कि प्राचीन भारत केवल आध्यात्म में नही अपितु समाज दर्शन में भी किसी प्रकार से पीछे नही था | प्राचीन भारत के राजशास्त्रियों में चाणक्य (Chanakya) का स्थान बहुत ऊँचा है उअर उसे कूटनीति तथा शासनकला का सबसे महान प्रतिपादक कहा जा सकता है |
वस्तुत: कौटिल्य (Chanakya) का अर्थशास्त्र भारतीय रचनाओ में राजशास्त्र का सबसे महत्वपूर्ण ग्रन्थ है | इस ग्रन्थ के इतने अधिक महत्व के चार कारण है पहला कौटिल्य एक यथार्थवादी विचारक और व्यावहारिक राजनतिज्ञ था और उसने ऐसी समस्याओं के विषय में लिखा है जिनका व्यक्तियों , विशेष रूप से सार्वजनिक क्षेत्र में कार्य करने वाले व्यक्तियों को अपने व्यावहारिक जीवन में वस्तुत: सामना करना पड़ता है | दूसरा प्राचीन भारत में सामान्यतया यह परम्परा प्रचलित थी कि राजनीती की विवेचना उसे धर्म का एक अंग मानकर की जाती थी लेकिन कौटिल्य ने इस परम्परा से हटकर राजनीति पर स्वतंत्र रूप से अर्थात उसे धर्म से पृथक करके लिखा है | तीसरा कौटिल्य का अर्थशास्त्र राजनीती विषयक सभी ग्रंथो और विचारों का संग्रह तथा सार है चौथा कौटिल्य ने न केवल राजनितिक विचारों का प्रतिपादन किया वरन अपने व्यावहारिक कार्यो के आधार पर अपने देश को सुदृढ़ एवं केंद्रीकृत शासन प्रदान किया जैसा कि उसके पूर्व कभी भारतीयों ने नही जाना था |
भारत में कौटिल्य (Chanakya )के पूर्व राजनितिक बुद्धिमता तथा शासनकला के सिद्धांत अस्पष्ट रूप से इध उधर बिखरे हुए थे कौटिल्य ने इन सभी सिद्धांतो को एक स्थान पर एकत्रित कर शासनकला के एक पृथक और विशिष्ट विज्ञान की रचना करने का कार्य किया है | इस दृष्टि से कौटिल्य को शासनकला तथा कूटनीति का सबसे महान प्रतिपादक कहा जा सकता है |
भारत के महानतम कुटनीतिक चाणक्य (Chanakya) के जीवन के सम्बन्ध में प्रामाणिक साम्रगी का बड़ा शोचनीय अभाव है | उसके बहिर्मुखी व्यक्तित्व के समान ही उसके नाम भी अनेक रहे है जिनमे तीन अधिक प्रसिद्ध है विष्णुगुप्त , कौटिल्य और चाणक्य | उसका वास्तविक नाम विष्णुगुप्त था | उसे कौटिल्य इसलिए कहा जाता था कि उसका जन्म कुटिल नमक ब्राह्मण वंश में हुआ था | उसके पिता का नाम चाणक्य था इसलिए उसे चाणक्य भी कहते है | वर्तमानजगत में उसे विधतजगत में कौटिल्य और सामान्य जगत में चाणक्य के नाम से जाना जाता है | कौटिल्य मौर्य साम्राज्य के आधारशिला रखने वाले चन्द्रगुप्त मौर्य का समकालीन था | हिंदी के कवि तुलसीदास और सूरदास की तरह इनके जन्म स्थान के सबंध में बड़ा मतभेद है | बौद्ध ग्रन्थ उनकी जन्मभूमि तक्षशिला मानते है तो जैन ग्रंथो के अनुसार उनकी जन्मभूमि मैसूर राज्य का श्रवणबेई गोल प्रदेश है | इसके अलावा कुछ विद्वान इनका जन्मस्थान नेपाल का तराई क्षेत्र मानते है |
इनकी शिक्षा-दीक्षा नालंदा विश्वविद्यालय में हुयी | उस समय उत्तरी राज्यों का केंद्र मगध राज्य था जिस पर नन्द वंश का शासन था | इनका अंतिम शासक महापदनन्द था | एक कथा इस प्रकार है कि इसके प्रधानमंत्री शकटार इससे नाराज थे | राजा ने एक दिन कुछ ब्राह्मण निमंत्रित करने का कार्य शकटार को सौंपा | शकटार ने एक दिन इस काले शिखाधारी चाणक्य को पैरो में चुभ जाने पर कांस नामक घास को मट्ठा डालकर समूल नष्ट करते देखा था अत: वह कौटिल्य को निमत्रंन दे आया और उसे सबसे ऊँचा आसन दिया | कौटिल्य का रंग देखकर महापदनन्द ने उसे अपमानित किया तो कौटिल्य ने उसी समय शिखा खोलकर प्रण किया था कि जब तक नन्द वंश का नाश नही कर लूँगा शिखा नही बांधुगा |
चाणक्य (Chanakya) एक सच्चा ब्राह्मण था औत तत्कालीन समय के परम्पराओं के अनुसार उसका उद्यम अध्यापन कार्य था | शास्त्र तथा शस्त्र के ज्ञाता एवं शिक्षक के रूप में उसे अत्यधिक ख्याति प्राप्त थी और उसके समय में कदाचित ही कोई ऐसा शासक या मंत्री रहा हो जो इस महानतम आचार्य का शिष्य न रहा हो अथवा उसके व्यक्तित्व और निति से प्रभावित न हुआ हो | एक आदर्श अध्यापक के नाते वह स्वयं को व्यावहारिक राजनीती से अलग रखना चाहता था किन्तु अनिच्छा होते हुए भी परिस्थितयो के दबाव से वह भारत की सम्पूर्ण राजनीती का केंद्र बन गया |
उस समय यूनान के राजा सिकन्दर ने भारत पर आक्रमण कर भारत के एक बहुत बड़े भूभाग को पदाक्रांत कर डाला था | भारत उस समय अनेक छोटे छोटे प्रभुतासम्पन्न राज्यों में विभक्त था जिनमे संघठन का नितांत अभाव था और जो परस्पर संघर्ष और कलह में लिप्त थे | भारत पर जब सिकन्दर ने आक्रमण किया तब भारत के अनेक नरेशो ने अपने ही देशवासियों को हराने में सिकन्दर की सहायता की थी | इस घटनाचक्र से कौटिल्य को अत्यधिक आघात पहुचा और इस दुर्दशा से मुक्ति के लिए उसने हिमालय तथा समुद्र के बीच की इस सम्पूर्ण आर्यभूमि को एक शासनसूत्र में पिरोना आवश्यक समझा | अपने इस लक्ष्य को दृष्टि में रखते हुए उसने अपने शिष्य चन्द्रगुप्त मौर्य के द्वारा नन्द वंश का विनाश कराकर महान अखिल भारतीय मौर्य साम्राज्य का शिलान्यास किया | इसके बाद उसने तात्कालिक परिशितित्यो की पृष्टभूमि में राजनितिक विचारों का प्रकाशन करते हुए सुप्रसिद्ध ग्रन्थ अर्थशास्त्र की रचना की |
चन्द्रगुप्त मौर्य चाणक्य (Chanakya) की सहायता से ही सम्राट बना था उअर चाणक्य न केवल मौर्य साम्राज्य का महामंत्री वरन सब सभी कुछ था किन्तु इतना होने पर भी एक आदर्श ब्राह्मण की भांति वह त्याग एक आदर्श को ग्रहण कर वीतराग तपस्वी ही बना रहा | मौर्य साम्राज्य के महामंत्री की कुटिया के वैभव का चित्रण विशाखदत्त ने मुद्राराक्षस में इन शब्दों में किया है “कुटिया के एक ओर गोबर के उपलों को तोड़ने के लिए पत्थर पड़ा हुआ था दुसरी ओर विद्यार्थियों द्वारा लाई गयी लकडियो का गट्ठर पड़ा हुआ है सुखाने के लिए रखी गयी लकडियो के बोझ से छत दबी जा रही है और इसकी दीवार भी जीर्ण दशा में है “
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